Kanpur : दशहरा के दिन पूरा देश जहां रावण दहन कर खुशियां मनाता है, वहीं कानपुर के शिवाला स्थित दशानन मंदिर में उनकी विशेष अराधना (Worship of Ravana) की जाती है। उनकी विद्वता को याद किया जाता है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार विजयदशमी के दिन ही खुलता है। इसलिए सुबह से ही श्रृद्धालुओं की भीड़ जुट जाती है। भक्त दशानन से विद्या और ताकत का वर मांगते हैं।
लोग पूजन के साथ फोटो लेकर अपनी यादों में संजो लेते है। प्रतिमा का भव्य श्रृंगार व पूजन किया जाता है।
मान्यता है कि दशानन मंदिर में विजयदशमी के दिन लंकाधिपति रावण की आरती के समय नीलकंठ के दर्शन श्रद्धालुओं को मिलते हैं।
महिलाएं दशानन की प्रतिमा के करीब सरसों के तेल का दीया जलाती हैं। उन्हें तरोई के फूल अर्पित कर सुख समृद्धि, पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान व शक्ति की कामना करती हैं।
दशानन यहां शिवाला में शक्ति के प्रहरी के रूप में विराजमान हैं। शाम को आरती उतारी जाती है। यह कपाट साल में सिर्फ एक बार दशहरा के दिन ही खुलते हैं।
मंदिर का निर्माण वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। रावण की पूजा के पीछ तर्क है उसका प्रकांड विद्वान और ज्ञानी होना। यहां दशानन की अच्छाईयों को याद किया जाता हैं। वहीं लोगों को अहंकार न करने का संदेश मिलता है। क्योंकि ज्ञानी होने के बाद भी अहंकार करने से ही रावण का पूरा परिवार मिट गया था।