गणेश उत्सव ये सुनते ही हम सबके दिमाग में सबसे पहले (मुंबई) के गणपती उत्सव की छवि आ जाति है । क्यु की मुंबई में कितने आनंद, श्रद्धा और विश्वास से गणेश महोत्सव मनाया जाता हैं। इससे एक कहानी याद आती है । क्या आपको पता है की हम गणपति बाप्पा मोरया क्यों कहते है?
प्रस्तुति : डॉ. रोशनी टाक
कर्नाटक के एक छोटे से गांव में गणेश जी के भक्त मोरया गोस्वामी रहते थे । वे हर जीव में गणेश जी को ही देखते थे । किसी ने घर के भार मरा हुआ चूहा फेक दिया तो वो उसका अंतिम संस्कार कर दिया करती द, ऐसे ही कोई भी पशु या पक्षी उन्हें मरा हुआ मिले तो वो उसका अंतिम संस्कार करते थे । संत जी अपनी गणेश भक्ति में ही मगन रहते थे, और जैसे मोरया स्वामी जी सारे जीवो से अत्यंत प्रेम करते थे उसी प्रकार सारे पशु पक्षी भी उनसे उतना ही प्रेम करते थे और वैसे भी जब प्रभु से प्रेम होता है, तब सब जीवों से प्रेम हो ही जाता है ।
और उन्होने कुछ समय बाद उन्होंने कर्नाटक छोड़ दिया और महाराष्ट्र आ गए। यहा भी वे गणेश जी की पहले की ही तरह नित्य भक्ति करने लगे।
अब यहां के गांव वाले भी उनकी इस कर्म से चिढ़ाने लगे, उन्होंने संत जी को गांव से निकाल दिया, गांव से उनको गणेश जी हाथ पकड़ ले जाने लगे तो संत जी ने भगवान से कहा, भगवन आप यही रहे, यही स्थापित हो जाइए कुछ भला हो गांव वालो का, तो गणेश जी ने उनकी बात मान अपने पोते आमोद से कहां की आप संत जी के संग रहे, तब आमोद भक्त मोरया गोस्वामी जी का हाथ पकड़े चलते रहे। ऐसे वे आठ गांव से गांव वालो द्वारा निकाले गए, संत मोरया गोस्वामी जी, और वही आठ गांवों में अष्ट विनायक के रूप में स्थापित है गणेश जी।

गणपति बप्पा “मोरया” क्यों कहते हैं…
भक्त मोरया गोस्वामी कर्नाटक के एक छोटे से गांव से थे, वे गणेश जी के परम भक्त थे, हर जीव में गणेश जी को ही देखते थे। किसी ने घर पर चूहा मार बाहर फेक दिया तो वो उसका अंतिम संस्कार कर दिया करते थे, कहते ये गणेश जी का वाहन है।
कोई स्वान मरा मिलता उसका भी अंतिम संस्कार कर देते, कोई चिड़िया, कोई भी जीव मृत मिलता तो उनका अंतिम संस्कार कर देते।
संत जी अपनी गणेश भक्ति में ही मगन रहते, सभी जीवो को अत्यन्त प्रेम करते थे जीव भी उनसे उतना ही प्रेम करते थे, वैसे भी जब प्रभु से प्रेम होता है न तब सब जीवो से प्रेम हो ही जाता है।
कुछ समय बाद उन्होंने कर्नाटक छोड़ दिया और महाराष्ट्र आ गए। यहां भी भक्त मोरया गणेश जी की वही नित्य की दिनचर्या, वहीं सेवा, वहीं कर्म। जो जीव मृत मिले उसका अंतिम संस्कार कर देना, श्रीगणेश का मनन, श्रीगणेश से प्रीति भक्ति।
अब यहां के गांव वाले भी उनकी इस कर्म से चिढ़ाने लगे, उन्होंने संत जी को गांव से निकाल दिया, गांव से उनको गणेश जी हाथ पकड़ ले जाने लगे तो संत जी ने भगवान से कहा, भगवन आप यही रहे, यही स्थापित हो जाइए कुछ भला हो गांव वालो का, तो गणेश जी ने उनकी बात मान अपने पोते आमोद से कहां की आप संत जी के संग रहे, तब आमोद भक्त मोरया गोस्वामी जी का हाथ पकड़े चलते रहे। ऐसे वे आठ गांव से गांव वालो द्वारा निकाले गए, संत मोरया गोस्वामी जी, और वही आठ गांवों में अष्ट विनायक के रूप
अन्तिम समय में गणेशजी ने भक्त मोरया को दर्शन दिए और उनसे पूछा आप क्या चाहते हो, बोलिए जो इच्छा हो वो पूर्ण होगी, तो भक्त जी ने कहा प्रभु मेरा नाम आप के नाम के संग जुड़ जाए बस…
फिर इन्होंने जीवित समाधि ले ली। तभी से कहते हैं, गणपति बप्पा मोरया… गणपति बप्पा मोरया कहने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं।
हम गणपति बप्पा मोरया के नारे तो लगा लेते है पर हमे उसके पीछे का कारण नही
पता होता, पर आज हमने उसके पीछे का कारण जाना ।

8 साल मुंबई रहने के बाद जब मैं वापस अपने जन्म स्थान जयपुर आई तो मुझे लगा कि अब हम शायद मुंबई की तरह गणपति उत्सव नई मना पाएंगे, पर जहा श्रद्धा है वहा राह भी है हमने एक बार घर पर ही आटे के गणपती बनाए और गणेश उत्सव बड़े धूम धाम से मनाया, और एक बार 11 दीन के मिट्टी के एकदंत को हमरे घर विराजमान करा। और उनके आशीर्वाद से हमे काफी खुशियां और उपलप्धिया प्राप्त हुईं। इससे हमे ये मालूम पड़ता है की इससे फर्क नई पड़ता आप किस जगह पर है , फर्क पड़ता है तो बस आपकी श्रद्धा से।