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Diwali 2023

Diwali 2023 : दीपावली पर्व का जानें ऐतिहासिक, पौराणिक एवं वैज्ञानिक महत्व

Posted on November 3, 2023 By Manish Srivastava No Comments on Diwali 2023 : दीपावली पर्व का जानें ऐतिहासिक, पौराणिक एवं वैज्ञानिक महत्व

अलीगढ़ : दीपावली पर्व (Diwali 2023) का पौराणिक, ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक महत्व के विषय में विस्तृत जानकारी दे रहे है श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परम पूज्य गुरुदेव पंडित हृदय रंजन शर्मा व्हाट्सएप नंबर-9756402981,8272809774

⭐दीपावली हमारा सबसे प्राचीन धार्मिक पर्व है। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। देश-विदेश में यह बड़ी श्रद्धा, विश्वास एवं समर्पित भावना के साथ मनाया जाता है। यह पर्व ‘प्रकाश-पर्व’ के रूप में मनाया जाता है




🌸इस पर्व के साथ अनेक धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मुख्यतया: यह पर्व लंकापति रावण पर विजय हासिल करके और अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपने घर आयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है

🍁पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्मण सहित आयोध्या में वापिस लौटे थे तो नगरवासियों ने घर-घर दीप जलाकर खुशियां मनाईं थीं। इसी पौराणिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष घर-घर घी के दीये जलाए जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं

🌻दीपावली पर्व से कई अन्य मान्यताएं, धारणाएं एवं ऐतिहासिक घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं। कठोपनिषद् में यम-नचिकेता का प्रसंग आता है। इस प्रसंगानुसार नचिकेता जन्म-मरण का रहस्य यमराज से जानने के बाद यमलोक से वापिस मृत्युलोक में लौटे थे। एक धारणा के अनुसार नचिकेता के मृत्यु पर अमरता के विजय का ज्ञान लेकर लौटने की खुशी में भू-लोकवासियों ने घी के दीप जलाए थे। किवदन्ती है कि यही आर्यवर्त की पहली दीपावली थी

🔸एक अन्य पौराणिक घटना के अनुसार इसी दिन श्री लक्ष्मी जी का समुन्द्र-मन्थन से आविर्भाव हुआ था। इस पौराणिक प्रसंगानुसार ऋषि दुर्वासा द्वारा देवराज इन्द्र को दिए गए शाप के कारण श्री लक्ष्मी जी को समुद्र में जाकर समाना पड़ा था। लक्ष्मी जी के बिना देवगण बलहीन व श्रीहीन हो गए

🌟इस परिस्थिति का फायदा उठाकर असुर सुरों पर हावी हो गए। देवगणों की याचना पर भगवान विष्णु ने योजनाबद्ध ढ़ंग से सुरों व असुरों के हाथों समुद्र-मन्थन करवाया

💥समुन्द्र-मन्थन से अमृत सहित चौदह रत्नों में श्री लक्ष्मी जी भी निकलीं, जिसे श्री विष्णु ने ग्रहण किया। श्री लक्ष्मी जी के पुनार्विभाव से देवगणों में बल व श्री का संचार हुआ और उन्होंने पुन: असुरों पर विजय प्राप्त की। लक्ष्मी जी के इसी पुनार्विभाव की खुशी में समस्त लोकों में दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाईं गई

🏵इसी मान्यतानुसार प्रतिवर्ष दीपावली को श्री लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना की जाती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार समृद्धि की देवी श्री लक्ष्मी जी की पूजा सर्वप्रथम नारायण ने स्वर्ग में की। इसके बाद श्री लक्ष्मी जी की पूजा दूसरी बार, ब्रह्मा जी ने, तीसरी बार शिव जी ने, चौथी बार समुन्द्र मन्थन के समय विष्णु जी ने, पांचवी बार मनु ने और छठी बार नागों ने की थी

🌷दीपावली पर्व के सन्दर्भ मे एक पौराणिक प्रसंग भगवान श्रीकृष्ण भी प्रचलित है। इस प्रसंग के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था मे पहली बार गाय चराने के लिए वन में गए थे। संयोगवश इसी दिन श्रीकृष्ण ने इस मृत्युलोक से प्रस्थान किया था

🔥एक अन्य प्रसंगानुसार इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक नीच असुर का वध करके उसके द्वारा बंदी बनाई गई देव, मानव और गन्धर्वों की सोलह हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में लोगों ने दीप जलाए थे, जोकि बाद मे एक परंपरा में परिवर्तित हो गई

🌺दीपावली के पावन पर्व से भगवान विष्णु के वामन अवतार की लीला भी जुड़ी हुई है। एक समय दैत्यराज बलि ने परम तपस्वी गुरू शुक्राचार्य के सहयोग से देवलोक के राजा इन्द्र को परास्त करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से महर्षि कश्यप के घर वामन के रूप में अवतार लिया

🌸 जब राजा बलि भृगकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे तो भगवान वामन ब्राहा्रण वेश मे राजा बलि के यज्ञ मण्डल में जा पहुंचे। बलि ने वामन से इच्छित दान मांगने का आग्रह किया। वामन ने बलि से संकल्प लेने के बाद तीन पग भूमि मांगी। संकल्पबद्ध राजा बलि ने ब्राहा्रण वेशधारी भगवान वामन को तीन पग भूमि नापने के लिए अनुमति दे दी

🍁तब भगवान वामन ने पहले पग में समस्त भूमण्डल और दूसरे पग में त्रिलोक को नाप डाला। तीसरे पग में बलि ने विवश होकर अपने सिर को आगे बढ़ाना पड़ा। बलि की इस दान वीरता से भगवान वामन प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि को सुतल लोक का राजा बना दिया और इन्द्र को पुन: स्वर्ग का स्वामी बना दिया। देवगणों ने इस अवसर पर दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाई और पृथ्वीलोक में भी भगवान वामन की इस लीला के लिए दीप मालाएं प्रज्जवलित कीं

⭐दीपावली के दीपों के सन्दर्भ में देवी पुराण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग भी जुड़ा हुआ है। इसी दिन दुर्गा मातेश्वरी ने महाकाली का रूप धारण किया था और असंख्य असुरों सहित चण्ड और मुण्ड को मौत के घाट उतारा था

💥मृत्युलोक से असुरों का विनाश करते-करते महाकाली अपना विवके खो बैठीं और क्रोध में उसने देवों का भी सफाया करना शुरू कर दिया। देवताओं की याचना पर शिव महाकाली के समक्ष प्रस्तुत हुए। क्रोधावश महाकाली शिव के सीने पर भी चढ़ बैठीं। लेकिन, शिव-’शरीर का स्पर्श पाते ही उसका क्रोध शांत हो गया। किवदन्ती है कि तब दीपोत्सव मनाकर देवों ने अपनी खुशी का प्रकटीकरण किया

🔥दीपावली पर्व के साथ धार्मिक व पौराणिक मान्यताओं के साथ-साथ कुछ ऐतिहासिक घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं। एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार गुप्तवंश के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के समय पूरे राज्य में दीपोत्सव मनाकर प्रजा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति की थी

🌲इसके अलावा इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपना संवत चलाने का निर्णय किया था। उन्होंने विद्वानों को बुलवाकर निर्णय किया था कि नया संवत चैत्र सुदी प्रतिपदा से ही चलाया जाए

🌻दीपावली के दिन ही महान समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक और ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के रचियता महर्षि दयानंद सरस्वती की महान् आत्मा ने ३० अक्तूबर, १८८३ को अपने नश्वर शरीर को त्यागकर निर्वाण प्राप्त किया था

🏵परम संत स्वामी रामतीर्थ का जन्म इसी दिन यानी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही हुआ था और उनका देह त्याग भी इसी दिन होने का अनूठा उदाहरण भी हमें मिलता है। इस प्रकार स्वामी रामतीर्थ के जन्म और निर्वाण दोनों दिवसों के रूप में दीपावली विशेष महत्व रखती है

🌟बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध के समर्थकों व अनुयायियों ने २५०० वर्ष पूर्व हजारों-लाखों दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। आदि शंकराचार्य के निर्जीव शरीर में जब पुन: प्राणों के संचारित होने की घटना से हिन्दू जगत अवगत हुआ था तो समस्त हिन्दू समाज ने दीपोत्सव से अपने उल्लास की भावना को दर्शाया था

🌸दीपावली के सन्दर्भ में एक अन्य ऐतिहासिक घटना भी जुड़ी हुई है। मुगल सम्राट जहांगीर ने ग्वालियर के किले में भारत के सारे सम्राटों को बंद कर रखा था। इन बंदी सम्राटों में सिखों के छठे गुरू हरगोविन्द जी भी थे। गुरू गोविन्द जी बड़े वीर दिव्यात्मा थे

🍁 उन्होंने अपने पराक्रम से न केवल स्वयं को स्वतंत्र करवाया, बल्कि शेष राजाओं को भी बंदी-गृह से मुक्त कराया था और इस मुक्ति पर्व को दीपोत्सव के रूप में मनाकर सम्पूर्ण हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों ने अपनी प्रसन्नता को व्यक्त किया था

🌺कुल मिलाकर दीपावली पर्व से जुड़ी हर धार्मिक व पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक घटना इस पर्व के प्रति जनमानस में अगाध आस्था तथा विश्वास बनाए हुए है

⭐दीपावली न केवल धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बड़ी महत्वपूर्ण है। क्योंकि दीपावली पर्व ऐसे समय पर आता है, जब मौसम वर्षा ऋतु से निकलकर शरद ऋतु में प्रवेश करता है। इस समय वातावरण में वर्षा ऋतु में पैदा हुए विषाणु एवं कीटाणु सक्रिय रहते हैं और घर में दुर्गन्ध व गन्दगी भर जाती है

🔥दीपावली पर घरों व दफ्तरों की साफ-सफाई व रंगाई-पुताई तो इस आस्था एवं विश्वास के साथ की जाती है, ताकि श्री लक्ष्मी जी यहां वास करें। लेकिन, इस आस्था व विश्वास के चलते वर्षा ऋतु से उत्पन्न गन्दगी समाप्त हो जाती है। दीपावली पर दीपों की माला जलाई जाती है

🌹घी व वनस्पति तेल से जलने वाल दीप न केवल वातावरण की दुर्गन्ध को समाप्त सुगन्धित बनाते हैं, बल्कि वातावरण में सक्रिय कीटाणुओं व विषाणुओं को समाप्त करके एकदम स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते हैं

🌷कहना न होगा कि दीपावली के दीपों का स्थान बिजली से जलने वाली रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियां कभी नहीं ले सकतीं। इसलिए हमें इस ‘प्रकाश-पर्व’ को पारंपरिक रूप मे ही मनाना चाहिए




🏵दिवाली की रात,इन विशेष जगह पर “दीपक” अवश्य लगाएं

🌻पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक लगाकर घर लौट आएं। दीपक लगाने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं

🌸बिल्ववृक्ष के नीचे भी दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्ववृक्ष भगवान शिव का प्रिय है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है
🌺घर के आसपास जो भी मंदिर हो वहां रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। इससे सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है

♦घर के पास कोई नदी यातालाब हो तो वहा पर भी रात के समय दीपक अवश्य लगाएं।इससे दोषो से मुक्ति मिलती है

🔶घर के आसपास वाले चौराहों पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने से भी पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं

🌲तुलसी जी और शालिग्राम के पास रात के समय दीपक अवश्य लगाएं। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं

🌷घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं

⭐घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक भी रातभर बुझना नहीं चाहिए
💥धन प्राप्ति की कामना वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए

🍁पितरों का दीपक, गया तीर्थ के नाम से घर के दक्षिण दिशा में लगाये, इस से पितृदोष से मुक्ति मिलती है




🌟प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परम पूज्य गुरुदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा अध्यक्ष श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरू रत्न भंडार पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़ यूपी व्हाट्सएप नंबर-9756402981,8272809774

धर्म अध्यात्म Tags:Diwali festival, Know the historical, mythological and scientific significance of Diwali festival

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