💥 आश्विन शुक्लपक्ष, पंचमी दिन गुरुवार ज्येष्ठा नक्षत्र सौभाग्य योग और बब करण के शुभ संयोग में 19 अक्टूबर 2023 को देवी मॉ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता (Pancham Skandamata ) की पूजा घर-घर होगी। तो आइए माता की पूजा-पाठ और माता के विषय में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं प्रसिद्ध (ज्योतिषाचार्य) परमपूज्य गुरुदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा (अध्यक्ष) श्री गुरु ज्योतिष संस्थान गुरु रत्न भंडार पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़।
💥माता का चोला (पीले रंग का ) शुभ रंग (सफेद) भोग केला दान करने से शरीर स्वच्छ और सुंदर बनता है।
🌺मां दुर्गा जी के पांचवे स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्र के पांचवे दिन की जाती है। भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम मैं देवताओं के सेनापति भी बने थे। देवी भगवती का पांचवा स्वरूप नारी शक्ति और मातृशक्ति का सजीव चरित्र है। स्कंद कुमार की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। वह गणेश जी की भी माता है। गणेश जी मानस पुत्र हैं। और कार्तिकेय जी गर्भ से उत्पन्न हुए तारकासुरको वरदान था कि वह शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न पुत्र द्वारा ही मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। इसी कारण देवी पार्वती जी का शंकर जी से मंगल परिणय हुआ इससे ही प्रभु कार्तिकेय पैदा हुए औरअसुर तारकासुर का वध हुआ कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण पद्मासना देवीभी कहा जाता है।
मां स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान कार्तिकेय की उपासना स्वयमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है। अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए शंकर पार्वती के मांगलिक मिलन को सनातन धर्म संस्कृति में विवाह परंपरा का प्रारंभ माना गया है। कन्यादान, गर्भधारण इन सभी की उत्पत्ति शिव और पार्वती के प्रसंगों उपरांत हुई। नवरात्र के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल (बहुत) महत्व बताया गया है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित होता है।
💥मोक्ष प्रदाता है मां स्कंदमाता-
🌸 पौराणिक मान्यता अनुसार देवी का यह रूप इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति का समागम है। जब ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व का मिलन त्रिशक्ति के साथ होता है। तो स्कंद का जन्म होता है। नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना करने से भक्त अपने व्यवहारिक ज्ञान को कर्म में परिवर्तित करते हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार देवी का यह रूप इच्छाशक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व का मिलन त्रिशक्ति के साथ होता है। तो प्रभु स्कंध का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत आरंभ का प्रतीक मानी गई है।
जातक को सही दिशा का ज्ञान न होने के कारण वह विफल हो जाता है। मां स्कंदमाता की आराधना करने वाले को भगवती जीवन में सही दिशा ज्ञान का उपयोग कर उचित कर्मों द्वारा सफलता सिद्धि प्रदान करती हैं। योगीजन इस दिन विशुद्ध चक्र में अपना मन एकाग्र करते हैं। यही चक्र प्राणियों मे स्कंदमाता का स्थान है। स्कंदमाता का विग्रह चार भुजाओं वाला है। यह अपनी गोद में भगवान स्कंद को बैठाए रखती हैं। दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा से धनुष बाण धारी छहमुख वाले (षडानन) बाल रूप स्कंद को पकड़े रहती हैं। जबकि बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा आशीर्वाद और बर प्रदाता मुद्रा में रखती हैं।
नीचे वाली दोनों भुजाओं में माता कमल पुष्प रखती हैं। इनका वर्ण पूर्ण पूरी तरह निर्मल कांति वाला सफेद है। यह कमल आसन पर विराजती हैं। वाहन के रूप में इन्होंने सिह को अपनाया है। कमल आसन वाली स्कंदमाता को “पद्मासना” भी कहा जाता है। यह वात्सल्य विग्रह है। अतः कोई शस्त्र ये धारण नहीं करती इनकी कांति का अलौकिक प्रभामंडल इनके उपासक को भी मिलता है। इनकी उपासना से साधक को परम शन्ति और सुख मिलता है। उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होजाती और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर बढ़ता है जातक की कोई लौकिक कामना शेष नहीं रहती है।
♦पौराणिक मंत्र ♦
🌲”या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता! “नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमो नमः”
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🍁 प्रसिद्द (ज्योतिषाचार्य) परमपूज्य गुरुदेव पंडित हृदय रंजन शर्मा (अध्यक्ष )श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़ यूपी WhatsApp नंबर-9756402981,7500048250