अलीगढ़ : चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल मंगलवार से प्रारंभ हो रही है। चैत्र नवरात्रि घट स्थापना, कलश स्थापना मुहूर्त एवं विधि के विषय में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परम पूज्य गुरुदेव पं.हृदय रंंजन शर्मा .व्हाट्सएप नंबर.9756402981,7500048250
🔥प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक शारदीय नवरात्रि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस नवरात्रि मां जगदंबा घोड़े पर आएंगी और मनुष्य पर बैठकर जाएंगी ।
🌻आगमन वाहन
〰️〰️〰️〰️〰️*🌻इस बार मंगलवार को देव लोक से पृथ्वी पर देवीमाता का आगमन घोड़े पर सवार होकर आ रही है,
🌻प्रस्थान वाहन
〰️〰️〰️〰️ इस बार देवी माता नवरात्रीके पश्चात गुरुवार को मनुष्य पर प्रस्थान करते हुए पृथ्वी से देवलोक को प्रस्थान करेंगी
🌷साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।
🌺घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
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🌟नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।
कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
दिवाकाल 10:45 से 01:54 बजे तक कलश स्थापना (जौ बोना) अधिक शुभ रहेगा। इस समय चौघड़िया मुहूर्त अनुसार चर, लाभ, अमृत के तीन अति उत्तम चौघड़िया मुहुर्त चल रहे होंगे जो घट स्थापना करने वाले व्यक्तियों के जीवन के हर कार्यों को पूर्ण करेंगे, ये समय सभी तरह से दोष मुक्त है। इसके बाद दोपहर अभिजित मुहूर्त 11:39 से 12:25 तक रहेगा इसमे भी घटस्थापना करना शुभ माना जाता है।

🍁नवरात्रि की तिथियाँ
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पहला नवरात्र – प्रथमा तिथि, 09अप्रैल 2024, दिन मंगलवार माँ शैलपुत्री की उपासना।
♦️दूसरा नवरात्र – द्वितीया तिथि, 10 अप्रैल 2024, दिन बुधवार माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।
♦️तीसरा नवरात्र – तृतीया तिथि, 11अप्रैल 2024, दिन गुरुवार माँ चंद्रघंटा की उपासना।
♦️चौथा नवरात्र – चतुर्थी तिथि, 12अप्रैल 2024, शुक्रवार माँ कुष्मांडा की उपासना।
♦️पांचवां नवरात्र – पंचमी तिथि , 13 अप्रैल2024, शनिवार माँ स्कन्द जी की उपासना।
♦️छठा नवरात्र – षष्ठी तिथि, 14 अप्रैल 2024, रविवार माँ कात्यायनी की उपासना।
♦️सातवां नवरात्र – सप्तमी तिथि, 15अप्रैल 2024, सोमवार माँ कालरात्रि की उपासना।
♦️आठवां नवरात्र – अष्टमी तिथि, 16 अप्रैल2024, मंगलवार माँ महागौरी की उपासना।
♦️नौवां नवरात्र – नवमी तिथि, 17 अप्रैल 2024, बुधवार माँ सिद्धिदात्री की उपासना।
🌸घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री
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👉 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
👉 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
👉 पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
👉 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
👉 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
👉 नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल
👉 रोली , मौली
👉 इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
👉 पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
👉 पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
👉 कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
👉 ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
👉 नारियल, लाल कपडा, फूल माला
,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती
🌷भगवती मंडल स्थापना विधि
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जिस जगह पूजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी गणेश जी का पूजन करें।
भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।
🌟दुर्गा पूजन सामग्री
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पंचमेवा पंचमिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।
☀️घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि
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सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।
आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
“ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें
♦️आरती
जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
>मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…
♦️श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरार्तिकं समर्पयामि॥
आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये।और गलती की क्षमा प्रार्थना करें